कृतज्ञ समझो Kritghya Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कृतज्ञ समझो Kritghya

कृतज्ञ समझो

हम सर झुका देते है
जब भी कोई हसीना सामने आती है
अपने दिल से कुछ कहती है
और हमारा शुक्रिया कुबूल करती है।

उनके हमारे पर है उपकार
हम देते है शुभेच्छा और आवकार
जिंदगी में वो उछःलते रहें
अपनी बात सही दिल से कहते रहे।

हम तो उनकी अच्छाई देखते है
उनकी मासूमियत की सराहना करते है
जो सामने दिखाई पड़ता है उसकी ही बात करते है
पर बात बात में खिल्ली भी उडा देते है।

इंसानियत की बात आती है तो वो खिन्न हो जाते है
हमसे भी कभी कभी भिन्न अन्दाज में बोलते है
हम उनके कठोर शब्दों को सहजता से लेते है।
आदमी ही आदमी की भाषा समझता है।

बात बात में उलझना अच्छा नहीं
किसीको भी अपनी नज़रो मे ही गिराना अच्छा नहीं
रखो उतना ही सम्बन्ध जिसे सम्हाल पाओ
अपने आपमें अच्छा करके कृतज्ञ समझो।

कृतज्ञ समझो Kritghya
Friday, July 7, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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बात बात में उलझना अच्छा नहीं किसीको भी अपनी नज़रो मे ही गिराना अच्छा नहीं रखो उतना ही सम्बन्ध जिसे सम्हाल पाओ अपने आपमें अच्छा करके कृतज्ञ समझो।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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