क्या मिला आपको ... kya milaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

क्या मिला आपको ... kya milaa

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क्या मिला आपको वदले में

सपने तो अपने ही होते है
जब ही जगाओ जग जाते है
एक आस मन में जगाये बैठा हूँ
टक टकी सी आकाश में लगाए बैठा हु

तारों को भी टूटते देखा है
बिजली को रेखा में बदलते देखा है
जज्बातो को कुचले जाते में बर्दाश्त नहीं कर सका
सपनों को टूटते हुए देख आन्सुओको मैंने जरुर रोका

सजाये तो थे सपने दोनों के लिए
पर मंजूर ना हो सके हमारे लिए
विधि का विधान मुझे मंजूर है
अभी भी आत्मविश्वास भरपूर है

ग्लानी होती है पलभर के लिए
रक्त रुक जाता है वहिनी में क्षणभर के लोए
'में अब तो गया ' सोचकर गभरा जाता हु
बड़ी मुश्किल से गभरू दिल को समजा पाता हु

शायद आप ज्यादा ही गभरू निकली
घर की आबरू को आपने ज्यादा तबज्जो दी
हम वही के वही रह गए राह देखते हुए
अपने गुलशन को सरेआम उजड़ते हुए

सपने तो मेरे थे लेकिन मालकिन आप थी
जान मेरी थी लेकिन नाजनीन आप थी
क्यों पुरे नहीं किये वो वादे जो दिए थे उपहार में?
क्या मिला आपको वदले में उपहास में

COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 11 August 2013

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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