लाख मनाया ....Lakh Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लाख मनाया ....Lakh

लाख मनाया
रविवार, २३ सितम्बर २०१८

है इश्क़ एक आग कादरिया
बस होवे नजदीकियां ही नजदीकियां
मैंने एक ही चीज़ मांग लिया
मेरे संग उसी ने हो लिया।

सब कुछ ठीक चला प्यार में
खलखल शांत नीर बह रहा नदी में
पर रूठ गया वालम एक ही रात में
तूफ़ान आ गया मेरे जीवन में।

मैंने लाख मनाया सनम को
मेरा आँचल फैलाया पाँव में
मन्नत की और वचन दिया
फिर भी उसने मुझे माफ़ नहीं किया।

ना रही मिठास और ना रहा सहारा
मैंने भी जी जान सेपकड़ा रहा किनारा
नाची, खूब नाची बहुत पाँव पड़ी
उसने भी सोचा फिर हामी भरी।

हँसता हुआ चेहरा खिल उठा
मेरे दिल से भी एक हंसी का गुब्बार उठा
हम दोनों ने राहत की एक सांस ली
फिर मिलकर प्रभु के सामने अपनी मस्तके झुका ली।

इश्क़ ना करियो कोई
और करो तो निभावना होई
उसमे कोई का गुरुर ना हो
हो सके तो सद्भावना ही हो।

हसमुख अमथालाल मेहता

लाख मनाया ....Lakh
Sunday, September 23, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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