लालची राक्षस Lalchi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लालची राक्षस Lalchi

लालची राक्षस

आपने अपनी हस्ती मिटाली
किसी के केहनेपर बजादीं ताली
हर बात पर सब दिखाते गये अपने रंग लाल
अपनी ही में फंसे खुद बिछाके जाल।

गांधीजी की समाधि पर आजकल कौन जाते है?
जिनकी अपनी साख दांवपर लगी है और जताना चाहते है
इतने सारे साल लोगो के पैसे पर अपना गुजारा किया
अब शुरुआत हो गयी है और लोगॉने किनारा कर दिया।

हर बात पर ना, और हर चीज पर नुस्ख
जिनकी हैसियत नहीं उनसे लेते है सिख
जो लोग भष्टाचार में लिप्त है उनसे ठगबंधन
ये कैसा प्रयास है? देशका और करना है विघटन?

हर बातपर अडंगा अपनी बात मनवाने का
कहां से आई उसुलो की जब आप के पास नहीं बहुमत सत्ता में रहने का
राष्ट्र सब देख रहा है और लोग भी सतर्क है
नहीं हजम होनेवाला है बेवकूफ बनाने का यह तर्क।

जब देशपर आपत्ती के बादल छाये है
तब ही आप के मन में ऐसे बिचार आये है
दलित के सामने दलित और किसान के सामने किसान
यही रह गया है आपका इतना सन्मान!

गांधीजी कहते थे ' ध्वस्त कर दो कांग्रेस को '
ये नहीं सम्हाल पाएंगे देश को
आज यही हो रहा है और बना दिया है जागीर कुनबे की
सब जगह लूट और जयकार लूट करने वाले की।

एक बेचारा
ना खा सका चारा
लड़कों का भविष्य भी ना संवारा
आज सब कर रहे है किनारा।

क्यों नहीं छीन लेते उनकी संपत्ति और अधिकार?
छीन लो मताधिकार और करो बहिष्कार
ये इन्ही के लायक है और संपत्ति को को करो जप्त
नहीं तो ये लालची राक्षश कभी नहीं होंगे समाप्त।

लालची राक्षस   Lalchi
Tuesday, July 18, 2017
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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