मैं जीना चाहती हूँ
संसार का एक अभिन्न अंग हूँ
सुन्दरता की प्रतीक
ममता की मूरत
त्याग-भरा जीवन मेरा
दिया मैंने ममता का आँचल
बहन का प्यार
अर्धांगिनी की सेवा-समर्पण और विश्वास
माता-पिता को दिया सम्मान
मैं हुँ फूलों की तरह कोमल
अंदर से लोहे की तरह सुदृढ़
नहीं मैं अबला, न दुर्बला
मैं हूँ शक्ति
मेरे बिना संसार का अस्तित्व अधूरा
ना मुझे दुत्कारो न करो अपमानित
दिल से लगाओ और अपनाओ
न फेंको कूड़ेदानों में
मत मारो मुझे कोख में जन्म से पहले
न जलाओ दहेज के लोभ में
मुझे भी जीने दो
पंच रुपों में-
माँ, बेटी, बहू, बहन, अर्धांगिनी।
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A beautiful poem dear poet Keep it up
Thanks a lot for your nice comments Dr. Dillip.