लुफ्त उठाते रहे..luft uthate rahen Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

लुफ्त उठाते रहे..luft uthate rahen

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लुफ्त उठाते रहे..luft uthate rahen

न फेंको पत्थर शान्त जल में
अशांत होने से क्या मिलेगा
जो मिला है उसी में खुश रहो
शक्रिया करो उस मालिक का और मस्त रहो

'पागलपन कि हद' बर्दास्त न होगी
दिल में हलचल और बेचेनी ही होगी
ऐसे प्यार में जीना क्या पसंद करोगे?
अपने आपको पागल करार दोंगे?

ये दशा उसके बराबर ही है
पागल बनना मतलब बेकरारी ही है
न मन चेन से बैठता है और सोने देता है
जो पास में है उसे भी खोने को कहता है

'जो मिलता है आनंद पागल होने में' वो और कहाँ
'ना किसी का काबू और ना किसी कि गुलामी'ऐसा आलम कहाँ
जनाब, आपका कहना सही पर एक 'अरण्यरुदन' जैसा है
जहाँ भागवत तो पढ़ाया जाता है पर सुनने वाला भेंसा होता है

खेर, प्यार का अपना एक अस्तित्व होता है
सही हुआ तो ठीक वरना आदमी खुद रोता रहता है
दिन में तारे गिनने कि आदत लग जाती है
ओर रात में चन्द्र की छाया मन में बस जाती है

यदि ऐसे प्यार की आपकी कल्पना है
तो बढाइए अपना पाँव और कामना कीजिये
पागलपन के हर क्षण आपको सुख देते रहे
खुद भी मस्त रहे, मगन रहे और लुफ्त उठाते रहे

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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