माँ की देन.. Maanki Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

माँ की देन.. Maanki

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माँ की देन
बुधवार, ६ अगस्त २०२०

नाकरो व्यक्त अपनेअलफ़ाज़ ऐसे
आप हो पुष्प होएक गुच्छ के
ना समजो इतने तुच्छ अपने आपको
रखो आस चूमने की आसमान को।

ना कोई बड़ा ना छोटा होता है
अपने आप में मस्त रहता है
ये तो है माँ की देन इंसान को
जो दिखाता है अपनी काबिलियत को।

ना किसी ने पाया है
अपनी माँ के कोख से
उसने उझाला है जीवन
अपने आप के अथाग प्रयास से।

मिल जाए यदि उसकी कृपा
जीवन सुखी रहे ओर राह सरल सदा
कर लो बुलंदी इतनी की
रहे रहेम सदा उसकी।

रखो अपने आप में इतना भरोसा
ना देखो थाली में किसने परोसा
ये तो एक जज्बा है कविता का
बेहता है जल सदा सरिता का।

डॉ. जाड़िआ हसमुख
आभार: शरद भाटिआ

माँ की देन.. Maanki
Wednesday, August 5, 2020
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 05 August 2020

ये तो एक जज्बा है कविता का बेहता है जल सदा सरिता का। डॉ. जाड़िआ हसमुख आभार: शरद भाटिआ

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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