मधुछत्ता... Madhuchhatta Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मधुछत्ता... Madhuchhatta

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मधुछत्ता
गुरूवार, ११ अक्टूबर २०१८

रही सही आबरू मिटटी में मिलादी
प्रधानमन्त्री पर खुल्ला आरोप मढ दिया
जिस की कोई बुनियाद नहीं उसपर इमारत बनवा दी
जग में सब के सामने जोकर की उपाधि हांसिल कर ली।

देश का भविष्य खतरे में है
इस समयइसी बात करना देशहित में नहीं है
सालों से देश जुज रहा उत्तम शश्त्रो के लिए
और ये लोग खेल रहे शत्रु के हाथो में।

देश की साख बढे
रोजगार के अवसर बढे
युवाधन देश के काम आए
और प्रगति कई गुनी बढ़ जाए।

इन दलालों को देशहित से दूर रखे
इनको कटकी खाने से रोके
इन्हों ने देश को बर्बाद किया है
सत्ता के लोभ में उन्हें अंधा बना दिया है।

ना ये देश के बारे में सोचते है
और ना ही देश के लोगों के बारे में
बस इन्हे अपनी खाली झोली भरनी है
उन्हें दाल पर लगी मधुछत्ता ही दिखती है

हसमुख अमथालाल मेहता

मधुछत्ता... Madhuchhatta
Thursday, October 11, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 11 October 2018

welcome manisha mehta 1 Manage Like · Reply · 1m · Edited

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Mehta Hasmukh Amathalal 11 October 2018

ना ये देश के बारे में सोचते है और ना ही देश के लोगों के बारे में बस इन्हे अपनी खाली झोली भरनी है उन्हें दाल पर लगी मधुछत्ता ही दिखती है हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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