में सुनता Mai Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

में सुनता Mai

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में सुनता
Thursday, March 14,2019
11: 05 aM

में सुनता रहता
जो जग कहता
पर लोग नहीं सुनते
बस अनसुनी कर देते।

सब मुझे सिख देते
और छोटा कर देते
अपने पर आनेपर मुकर जाते
और खिसिआने लगते

में गीला नहीं करता
पानी में रहना है तो मगर से अनबन नहीं रखते
सब से मिलकर चलना है
और अपने आप को बचाना है।

सच्चे को सब दरकिनार करते
और जूठे को सरपर बिठाते
खोटी वाहवाह करते
अपना मतलब निकाल लेते

ये दस्तूर है जमाने का
बस पैसा कमाने का
और वक्त के साथ चलने का
सच्चा पीछे रह जाता और जूठा आगे बढ़ जाता

हसमुख मेहता

में सुनता Mai
Thursday, March 14, 2019
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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