मजबूर
रविवार, ८अगस्त २०२१ `
ये रात की नीरव शांति
पर मन मैला और अशांति
नहीं सोने देती पलभर
जगाती मुझे रातभर।
दिन तो मेरे कट जाते
सपनों को सजाते
दिल को रखते खुश आते जाते
मन भी मेरा शामिल हो जाता मुस्कराते।
कठिनाई तो तब आती
जब उसकी शक्ल नहीं दिखाए देती
आनेका वादा करती और फिर नहीं आती
मेरे आँखि देखती रहती लगाके टकटकी।
यही भी अजीब सी बात है
प्रेमकी एक सौगाद है
उसकी हर चीज याद रहती
जीने का सहारा बन जाती।
रात को सपनोका महल सजाती
खिड़की दरवाजे सब खुला रखती
तारों की और देखकर अपने को महसूस करती
उसको ना देखकर फिर मायूस हो जाती।
राते मेरी बेरान और जीवन में शुष्की
टिस सी उठती मन में हलकी
लगाके रखती अपलकी
यादों से भर देती याद दिलाती सावनकी।
'नहीं मुश्किल होगी' वो कह गई
मैंने बड़ी नुश्किल से रोकी
उसका कहना ही मेरेलिए एक सदमा था
जिंदगी में एक तूफ़ान का आगाह था।
नही ढूंढ पाया उसका में उत्तर
मेरे उसके बिच खड़ा हो गया एक अंतर
वो तो कहकर चली गई दूर
में निराशा में डुबकर हो गया मजबूर।
डॉ हसमुख मेहता
साहित्यिकी
Jabbar Kiltan Very beautiful poem I respect your knowledge sir Very beautifully describes loneliness
Narayan Sahu My knowledge of Hindi is poor ji · Reply · 1 h
14 h Author Hasmikh Mehta Narayan Sahu. welcome n tks
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Narayan Sahu