मन तो मंदिर है Man To Mandir Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मन तो मंदिर है Man To Mandir

मन तो मंदिर है

जादू को रखो बाजू
और लो अपना तराजू
तोल लो जिंतना मरजी चाहे
बस ना हो फर्जी राहें।

जीतनी सोच ऊँची
उतनी ही इमारत गगनचुम्बी
रहने की सोचो आज ही
हो जायेगी आपकी सांज होते होते ही।

अलादीन के जादुई चिराग से नहीं
शेखचिल्ली की सोच से नहीं
अपनी सोच अपना दिमाग
खोज ही लोंगे अपना मारग।

गागर में सागर
छोटा सा हो जाएगा समंदर
यदि चाह है आपके भीतर
हौंसला है बुलंद है और कमान तैयार।

चाँद के बारेमे सोचा करते थे
उलटी सीधी कहानियां भी लिखा करते थे
आज उधर जाकर बसने की बात हो रही है
उहइ भेजा है, वही इंसान है हम भी यहीं ही है।

सोच रख इतनी बुलंद की उसे आकर पूछना पड़े
तुझे आशीर्वाद दे दे और पूछना पड़े
बोल, आज तुझे किस चीज की जरुरत है
तो तेरे पास शोहरत भी है।

मन तो मंदिर है
आवाज और होंसला अंदर ही है
बस करलो खर्च इंसानी फायदे के लिए
सब कुछ तो है जरूरतमंदों के लिए।

मन तो मंदिर है Man To Mandir
Friday, December 30, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 30 December 2016

welcome sayda layla Unlike · Reply · 1 · Just now 1 hour ago

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Mehta Hasmukh Amathalal 30 December 2016

मन तो मंदिर है आवाज और होंसला अंदर ही है बस करलो खर्च इंसानी फायदे के लिए सब कुछ तो है जरूरतमंदों के लिए।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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