मन्नत तो हमने Mannat To Hamne Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मन्नत तो हमने Mannat To Hamne

मन्नत तो हमने

मन्नत तो हमने मानी थी
जन्नत की भी इच्छा की थी
पर सब को चाहा कहाँ मिलता है?
अपने को अपना कौन कहता है! मन्नत तो हमने

आपने फूल बिखेर दिए
हमें ख़ुशी का माहौल दे दिए
हम सोचते रहे 'क्या यही प्रेम का सन्देश है'
मन में कुछ आदेश तो नहीं है! मन्नत तो हमने

आपका कहा सर आंखो पर
उझाला हो या अँधियारा पर
पर चाह यही है आप बने रहे
हमारे सरताज बने और चमकते रहे। मन्नत तो हमने

मन से धीरे से यह डर भी निकल गया
आपने धीरे से मुस्कुरा दिया
आँखों में चमक लाकर आपने फिर हंस दिया
हमारे मन में भी जैसे प्यार का इजहार कर दिया। मन्नत तो हमने


आप ना नहीं कर पाएंगे
हमारी बात जरूर से मानेंगे
हम लब्जो में कुछ नहीं कह पाएंगे
बस धीरे से कान में फुस फुसाएँगे। मन्नत तो हमने

मन्नत तो हमने  Mannat To Hamne
Tuesday, October 25, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 25 October 2016

rajeshwar singh Unlike · Reply · 1 · Just now 3 hours ago

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Mehta Hasmukh Amathalal 25 October 2016

आप ना नहीं कर पाएंगे हमारी बात जरूर से मानेंगे हम लब्जो में कुछ नहीं कह पाएंगे बस धीरे से कान में फुस फुसाएँगे। मन्नत तो हमने

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Mehta Hasmukh Amathalal 25 October 2016

welcoem saba rahil Unlike · Reply · 1 · Just now today

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Mehta Hasmukh Amathalal 25 October 2016

x welcoem neha crystal das Unlike · Reply · 1 · Just now today by

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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