मत देखो.. Mat Dekho Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मत देखो.. Mat Dekho

मत देखो.. mat dekho

मत देखो ऐसी नजरों से
मिला है सुख आपको उसकी रहमत से
प्यार से देखो ऊपर तो ज़रा
सारा आसमान है तुम्हारा। मत देखो

मांगो तो भी नहीं मिलेगा
संसार यूँ ही चलता रहेगा
बस हाथ खुले के खुले रहेंगे सदा
बस प्यास बुझाने के लिए सदा आमादा। मत देखो

करो शुक्रिया सही मायनो में
जुकादो नजर और नमादो शीष कदमो में
वो ही करेगा काम तमाम ख़ुशी के लिए
बस देखते जाओ सपने अपनों के लिए। मत देखो

कुछ नहीं करना है आपने
बस चेतना को जगाने है आपने
दिप रहे सदा जलता सही मायनो में
नमी बानी रहे अपने नयनो में। मत देखो

नहीं करना ज्यादा इंतज़ार
बहार आयी है खुश्बु के साथ बहार
बस फूलों की खुश्बु से मन तरबतर हो गया
जो सोचता था मन में वो भी भूल गया। मत देखो

अब ना रखना है कोई तमन्ना
भले वो कहे हाँ या ना
बस जी भरके देखा करेंगे
जब भी कोई मनसा करेंगे। मत देखो

मत देखो.. Mat Dekho
Saturday, September 24, 2016
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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