में बेवफा निकलाme Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

में बेवफा निकलाme

में बेवफा निकला
Friday, April 6,2018
2: 15 PM

तेरे अफ़सानो ने मुझे मजबूर कर दिया
भले ही में तुजसे अलग हो गया
प्रेम की डोर तो मजबूत ही थी
बस तेरा एक छोरही तो कमी थी।

कमी का एहसास जरूर है
पर हम नदी के दो छोर है
पानी बह तो जरूर रहा है
पर मन प्यासा का प्यासा ही रहा है।

अब क्या बाकी रह गया है?
सब कुछ तो लूट गया है
उनको लगता है, में बेवफा निकला
मेरा तो निकल ही गया दिवाला।

मैं रुका तो जरूर
पर उनकी नफरत ने कर दिया मजबूर
दुनिया जैसे मेरी बेरी बन गयी
मेरे मन और चेन को उड़ा ले गयी ।

मेरा भरोसानही उठ गया है
पर दुगुना हो गया है
प्रेम पर मेरा अधिकार तो नही
पर अनादर भी तो नहीं।

में बेवफा निकलाme
Friday, April 6, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 06 April 2018

ishi Lakhwara Waah! Thanks 🙂 1 Manage LikeShow more reactions · Reply ·

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 April 2018

मेरा भरोसा नही उठ गया है पर दुगुना हो गया है प्रेम पर मेरा अधिकार तो नही पर अनादर भी तो नहीं।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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