मे घूम रहा Me Ghum Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मे घूम रहा Me Ghum

मे घूम रहा


Saturday, March 24,2018
2: 27 PM

जख्म होता है ना नया
या पुराना
किस तरह से बताना!
या फिर जताना।

कोई दे जाता है पीड़ा
फिर दर्द रहता है उमड़ा
ना दबाए दबता है
ना रोने से मिटता है।

कैसे से बताओ गे ये जख्म
और किस से लगवाओ गे मरहम
बेइज्जती का लगा रहेगा गम
भय लगा रहेगा हरदम।

हसीना ने दिल लगा तो दिया
पर मजबूर कर दिया
में तो सुनते ही दंग रह गया
जहर का कड़वा घूंट पीकर रह गया।

इंसान का दुख भी अजीब सा है
ना मिले दिल चाहा तो, खो जाता है
सपने सजाता है और मिटाता है
अपने गम को आंसूओसे सेहलाता है।

अब तो नासूर बन गये है
देवता भी असुर बन गए है!
किसी का भरोसा कैसे करें?
अच्छी बात में भी हामी कैसे भरें।

अब तो मोत ही सहारा है
जीवन पुराबेसहारा है
नदी का नहीं मिलताकिनारा
मे घूम रहा बन के आवारा।

मे घूम रहा Me Ghum
Saturday, March 24, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 24 March 2018

welcome arka t chakravarty 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 24 March 2018

welcome Arka T. Chakrvarty Wonderful poem Hasmukh Mehta ji.. 1 Manage Like · Reply · 4h

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Mehta Hasmukh Amathalal 24 March 2018

अब तो मोत ही सहारा है जीवन पुरा बेसहारा है नदी का नहीं मिलता किनारा मे घूम रहा बन के आवारा।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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