मै वो नहीं....me vo nahi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मै वो नहीं....me vo nahi

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मै वो नहीं

मै वो नहीं जिसे जिसे आप जानते है
दिल में बसाया है और अपना मानते है
क्या करू जिसे में सही परखा जाऊ?
अपने दिलका बोझ हल्का कर पाऊ

वो खाए जा रहा है भीतर से
और रोता है दिलो अंतर से
वो क्या घडी थी जो आन पड़ी?
अघटित तो खुछ नहीं हुआ पर जान ले उडी

मेरी कलम से निकला हर शब्द बेईमानी है
में लिखता क्या क्या, पर सब नाफ़रमानी है
शब्द की आड़ में आत्मा की खिल्ली है
भटकी है राह सुनी, सुनी और खाली है

कवि की कल्पना सच नहीं हो सकती
जैसे बिन बादल बारिश हो नहीं सकती
अपने आप में सही साबित करके दिखाओ
अंधजन कोई है तो उसे रास्ता पार कर ले आओ

मेरे काव्यों से किसी का पेट नहीं भरता
मानवी की सांसे रूकती है और धीरे से मरता
सिर्फ आहे भरता है और अपने दुखड़े रोता है
दिन में छुपाता अपनी वेदना और रात में सोता है

मेरा जीना सफल हुआ यदि एक भी आदमी आगे आया
उसके दिल में क्या चल रहा है उसे सादगी से बताया
लोग कहते है 'कवी की कलम से आग और पानी दोनों उगलना चाहिए'
में अदना इंसान मुझे आप सबसे प्यार के सिवा और क्या चाहिए?

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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