मेरा ह्रदय परिवर्तन
खुद को रख जुदा
और अपने को कहलवा 'बंदा '
कर फिर इकठ्ठा चंदा
माहौल को कर और गंदा।
खुद को इतना कैसे गिरा सकते हो
सबके सामने सीना ऊपर उठा सकते हो
जुठ का पुलिंदा सरे आम बांटे रहते हो
फिर भी अपने आप को पाक कहते हो?
में धन इकठ्ठा कर रहा हूँ
फिर भी सबके सामने छिपा रहा हूँ
ये बात छीपी हुई नहीं है
पर मेरे सामने नही कहते है।
कैसे होगा मेरा इन्साफ?
जब दिल ही नहीं है साफ़
कितना दानपुण्य कमाऊं
पर किये हुए दुष्कर्म कैसे छिपाऊं?
होगा मेरा ह्रदय परिवर्तन
मै भी करूँगा भजनकीर्तन
सब से मिलकर रहूंगा
आपने आपको साबित करके रहूँगा।
सब समयानुसार होता है
किसी को जल्दी ज्ञान आ जाता है
कोई बाद में पछताकर सुधर जाता है
कोई तो जीवनभर भटकता ही रहता है।
welcome shubham a bajpai Unlike · Reply · 1 · Just now
सब समयानुसार होता है किसी को जल्दी ज्ञान आ जाता है कोई बाद में पछताकर सुधर जाता है कोई तो जीवनभर भटकता ही रहता है।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
welcome bhupendra rawat Unlike · Reply · 1 · Just now