मेरा ह्रदय परिवर्तन Mera Hriday Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मेरा ह्रदय परिवर्तन Mera Hriday

मेरा ह्रदय परिवर्तन

खुद को रख जुदा
और अपने को कहलवा 'बंदा '
कर फिर इकठ्ठा चंदा
माहौल को कर और गंदा।

खुद को इतना कैसे गिरा सकते हो
सबके सामने सीना ऊपर उठा सकते हो
जुठ का पुलिंदा सरे आम बांटे रहते हो
फिर भी अपने आप को पाक कहते हो?

में धन इकठ्ठा कर रहा हूँ
फिर भी सबके सामने छिपा रहा हूँ
ये बात छीपी हुई नहीं है
पर मेरे सामने नही कहते है।

कैसे होगा मेरा इन्साफ?
जब दिल ही नहीं है साफ़
कितना दानपुण्य कमाऊं
पर किये हुए दुष्कर्म कैसे छिपाऊं?

होगा मेरा ह्रदय परिवर्तन
मै भी करूँगा भजनकीर्तन
सब से मिलकर रहूंगा
आपने आपको साबित करके रहूँगा।

सब समयानुसार होता है
किसी को जल्दी ज्ञान आ जाता है
कोई बाद में पछताकर सुधर जाता है
कोई तो जीवनभर भटकता ही रहता है।

मेरा ह्रदय परिवर्तन  Mera Hriday
Tuesday, January 3, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 14 January 2017

welcome bhupendra rawat Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 14 January 2017

welcome monika gaur Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 13 January 2017

welcome shubham a bajpai Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 03 January 2017

सब समयानुसार होता है किसी को जल्दी ज्ञान आ जाता है कोई बाद में पछताकर सुधर जाता है कोई तो जीवनभर भटकता ही रहता है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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