मेरे संग...Mere Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मेरे संग...Mere

मेरे संग
मंगलवार, २५ दिसम्बर २०१८

मेरे संग रहती हो तुम
दिलपर हमेशा छाई रहती हो तुम
पता नहीं कब मिलना हुआ
मेरे दिल में तुम को बसाना हुआ।

ना ना करती रही
सर अपना हिलाती रही
पर मन में मेरा बसेरा था
एक नए दिनका सवेरा होना था।

मेरी ख़ुशी नहीं समा पायी
मेरे जीवन में सुख को लेके आयी
हरदम दिल मेरी मिलने को चाहे
अंदर ही अंदर आहे भरता रहे।

मेरी हो गई आरजू पूरी
कोई रही ना मन्नत अधूरी
तू कम नहीं कोई परी से कम कहानी
बस जैसे मैंने तुझे अपनाली।

कर ना कोई गीला
यदि में तुझे ना मिला
फिर भी दिल में संवारा मैंने तुझे
तू केह तो दे क्या लगती हो मुझे।

हसमुख मेहता

मेरे संग...Mere
Tuesday, December 25, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 25 December 2018

कर ना कोई गीला यदि में तुझे ना मिला फिर भी दिल में संवारा मैंने तुझे तू केह तो दे क्या लगती हो मुझे। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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