मेरे संग
मंगलवार, २५ दिसम्बर २०१८
मेरे संग रहती हो तुम
दिलपर हमेशा छाई रहती हो तुम
पता नहीं कब मिलना हुआ
मेरे दिल में तुम को बसाना हुआ।
ना ना करती रही
सर अपना हिलाती रही
पर मन में मेरा बसेरा था
एक नए दिनका सवेरा होना था।
मेरी ख़ुशी नहीं समा पायी
मेरे जीवन में सुख को लेके आयी
हरदम दिल मेरी मिलने को चाहे
अंदर ही अंदर आहे भरता रहे।
मेरी हो गई आरजू पूरी
कोई रही ना मन्नत अधूरी
तू कम नहीं कोई परी से कम कहानी
बस जैसे मैंने तुझे अपनाली।
कर ना कोई गीला
यदि में तुझे ना मिला
फिर भी दिल में संवारा मैंने तुझे
तू केह तो दे क्या लगती हो मुझे।
हसमुख मेहता
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
कर ना कोई गीला यदि में तुझे ना मिला फिर भी दिल में संवारा मैंने तुझे तू केह तो दे क्या लगती हो मुझे। हसमुख मेहता