'मेरी मस्ती ही मेरी अमिरी है ' Meri Masti Hi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

'मेरी मस्ती ही मेरी अमिरी है ' Meri Masti Hi

'मेरी मस्ती ही मेरी अमिरी है '

कौन से गाँव के बने मीर
और क्या करोगे बनके अमीर?
कोई ना बनाएगा मजार!
ना मिलेगा आपको कोई जुहार।

कोन होता है सच्चा दोस्त?
जो कर देता है पस्त
सब तकलीफें जब आप होते है त्रस्त
फिर आप भुल जाते हैं उन्हें जब रहते है व्यस्त।

अमिर बनना गुनाह नहीं
गरीब को पनाह देना आप के बस में नहीं
आपके वो सब रंगीनी दिखाई देगी
जो राते शराब में डुबाकर रख देगी।

आज तक कौन कृष्णा बन पाया है?
किस ने सुदामा हालचाल पूछा है?
सब अपने अपनी डींगे मार रहे है
वक्त आने पर वो ही कातिल मार करते है।

मेरा सारा धन ले लो
पर मुसीबत झेलने की हिम्मत दो
अमीरी क्या है और फकीरी?
बस दोनों कर देते है किरकीरी।

सारा जहाँ यदि मुझे मिल जाए तो भी क्या है?
यदि मेरी साँसे मेरे पास नहीं है
वो सच्चे लोग मेरे इर्दगिर्द नहीं है
अरे मेरा साया भी मेरा हमदर्द नहीं है!

अमीर बन जाना और गरीब का होना अभिश्राप है
वह सोच ही महापाप है
यदि दो नो विषमताएं आपको दुखी कर रही है?
तो कह दो अपने मन से 'मेरी मस्ती ही मेरी अमिरी है '

'मेरी मस्ती ही मेरी अमिरी है '  Meri Masti Hi
Friday, November 11, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 02 December 2016

welcome Rajesh Labana Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 12 November 2016

अमीर बन जाना और गरीब का होना अभिश्राप है वह सोच ही महापाप है यदि दो नो विषमताएं आपको दुखी कर रही है? तो कह दो अपने मन से 'मेरी मस्ती ही मेरी अमिरी है '

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Mehta Hasmukh Amathalal 12 November 2016

WELCOME ANUPRIYA GUPTA Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

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