मूल धारा Mul Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मूल धारा Mul

मूल धारा

देश का ढांचा पूरा बिगड़ा हुआ है
लोगो के मन में देश के प्रति समभाव बिगड़ा हुआ है
सब को फोगट में चाहिए और बस एक ही इच्छा
कोई ना पूछे उन्हें और ना करे पृच्छा।

देश का माहौल कई सालों से बिगड़ा
देश की राजनीती पर चंद कुटुम्बों ने किया कब्जा
बस पाँव में गिरने की भी इच्छा जाहिर की देश के सर्वोच्च पद पर बिराजमान राष्ट्रपति ने
मानो पूरा देश कर दिया गया हो हवाले!

पहले सूत्र आया 'गरीबी हटाओ'
फिर क्या हुआ? गरीब ही मिट गए
फिर आया तुष्टिकरण का नया जामा
चारो और होने लगा हंगामा।

देश में बदलाव की हवा आयी
चारु घोटाला और कई घोटाले ने राजनितिक हवा बिगाड़ी
पुराणी पार्टी की मानो हवा ही निकल गयी
उनकी रही सही साख मिटटी में मिल गयी।

आज सब शक के दायरे में है
देश चारो और सुलग रहा है
कई जगह ट्रैन पटरी से उतर रही है
तो कई जगह पुलिस पार्टी पर हमला किया जा रहा है।

नक्सलवादी और वादी में आतंकवादी सर उठा रहे है
इसका मूल कारण अनुच्छेद ३५ और धारा ३७० है
विध्वंसकारीओने बहार के मुल्कों से चंदा इकठा किया है
और देशको तोड़ने की चेष्टा में लगा दिया है।

समय आ गाया है देश को एक सूत्र में पिरोने का
देश चलेगा संविधान से और सबको मनाने का
जो नहीं मानता संविधान को उसे देश छोड़ना होगा
देश की हर मूल धारा में बहना होगा।

मूल धारा Mul
Saturday, August 26, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 26 August 2017

समय आ गाया है देश को एक सूत्र में पिरोने का देश चलेगा संविधान से और सबको मनाने का जो नहीं मानता संविधान को उसे देश छोड़ना होगा देश की हर मूल धारा में बहना होगा।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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