ना कोई था
शनिवार, १६ मार्च २०१९
रात भर दिया जलता रहा
साथ में मेरे दिलको भी जला रहा
रात थी अँधेरी
पर चोट लगी थी मुझे गहरी।
ना कोई था पूछने वाला
ना कोई ढाढस बंधाने वाला
बस अब तो घुट घुटकर मरना है
बको यादों को खूब संवारना है।
में सोचती रही
गम मेंनहाती रही
बाते जो मन में रह गयी
वो कहने को भी रह गयी।
अब तो तू ही रहता
सपने में मेरे आता
गुनगुनाता रहता
और कहता रहता।
अब करना कया है जीवन में?
भटकता रहना है उपवन में
मिला तो है ये मानवजीवन
महकाते रहना है जीवन।
रात तो रहेगी काली
पर में ना दूंगा उसे गाली!
वो तो अपनी मस्ती मेरहती
ना किसी की कभी सुनती
मैंने भी ठान लिया
मन को भी मना लिया
तू चाहे मुझे सता ले
राह से मुझे हटा ले।
हसमुख मेहता
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eden s trinidad 1 Edit or delete this Like · Reply · 1m