ना डरो तुम.. Naa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

ना डरो तुम.. Naa

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ना डरो तुम
मंगलवार, १२ मई २०२०

ना डरो तुम आफत से
और ना गभराओ आहट से
उसकी नियत ख़राब हुई है
उसकी चाहत में खोट आई है।ना डरो

में ख्याल तुम्हारा रखूंगी
अपनी कोख में समाऊँगी
तुम्हारे जख्म अब मेरे होंगे
किसी को तो जवाब देने होंगे।

तू हो मेरे बच्चे और सदा रहोगे
मेरा कहना तुम मानोगे
अपने को मसीबत से बचाना होगा
जो होगा उसका मुकाबला करना होगा।

मेरे पालने में तुम सुरक्षित होगे
अबउससे ना डरते रहोगे
उसे उलटे पाँव भागना होगा
मेरे धरती से उसे बीदाहोना होगा ।

तुम्हारे जख्म मेंजल्द भर दूंगी
हर बुरी नजर को ख़त्म कर दूंगी
बस ख्याल रहे नजरे इनायत बनी रहे
सब सकुशल रहे और आबाद रहे।

हसमुख मेहता

ना डरो तुम.. Naa
Tuesday, May 12, 2020
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

welcome vinod patel 1 Edit or delete this Like · Reply · 1m

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Vinod Patel Very nice poem uncle 1

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तुम्हारे जख्म मेंजल्द भर दूंगी हर बुरी नजर को ख़त्म कर दूंगी बस ख्याल रहे नजरे इनायत बनी रहे सब सकुशल रहे और आबाद रहे। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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