मै ना हारा Naa Haraa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मै ना हारा Naa Haraa

मै ना हारा

मै ही हूँ प्रेम
देता सबको सप्रेम
कोई लेता कोई नकारता
पर में कभी ना कतराता।

देना मेरा काम
ना करना उसे नाकाम
बड़ी मुद्दत के बाद निकला है
मन की एक शांत ज्वाला है।

प्रेम में इतनी ताकत?
पर कया है सच हकीकत?
बढ़ जाती है शान और शौकत
बंध हो जाती है सब हरकत।

इसका ना हो अपमान
सदैव होने दो गुणगान
भूल जाओ अपनी शान
बस सिमित सा रखो ज्ञान।

इसीमे ही है जन्नत
मैंने इस लिए रखी थी मन्नत
मै ना हारा और ना हुआ परास्त
सूर्यदेवता ने किया कमाल फिर हुए धीरे से अस्त।

मै ना हारा Naa Haraa
Sunday, August 6, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 06 August 2017

इसीमे ही है जन्नत मैंने इस लिए रखी थी मन्नत मै ना हारा और ना हुआ परास्त सूर्यदेवता ने किया कमाल फिर हुए धीरे से अस्त।... interesting depiction. Beautiful poem it is. Thanks for sharing.

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 August 2017

Shabana Ali Rahil Waah..khoob Like · Reply · 8 mins Manage

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 August 2017

welcome shabana ali rahil Like · Reply · 1 · 7 mins

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 August 2017

इसीमे ही है जन्नत मैंने इस लिए रखी थी मन्नत मै ना हारा और ना हुआ परास्त सूर्यदेवता ने किया कमाल फिर हुए धीरे से अस्त।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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