नफरत एक नासूर.. Nafrat Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नफरत एक नासूर.. Nafrat

नफरत एक नासूर

प्रभु की बलिहारी देखो
सोचो और समझो
आपको पूरा शरीर दिया है
उसका एक एक पुर्जा लाखो और करोडो का है।

पर मन शैतान का दिया है
वो हरदम कोई ना कोई नुस्खा अपनाता है
अपने को ही पीठ के पीछे से वार करता है
दुश्मन होने का हर फर्ज निभाता है।

हरदम जलता रहता है
किसी के ऐश्वर्या को सहन नहीं कर सकता है
पर एक बात भुल जाता है
उससे सिर्फ क्षणिक सुख का आभास होता है।

दूसरे का घर कैसे जल सकता है
जब की आप ऐसी कामना करते है
उससे तो आपका ही घर जल जाएगा
ऐसा सोचना आपके लिए हानिकारक होगा।

पर आप का दिल हिरे सरीखा है
वो हमेशा नेक सारखा है ओर धड़कता है
उसके लिए ना कोई हरीफ है और नाही करीबी
पर वो जानता है कोन है फरेबी।

आप दिल का कहा मानिए
और चुपचाप देखते रहिए
हुकम सिर्फ उसका ही मानिए
क्योंकि उसके लिए नफरत एक नासूर है।

भगवान् सब कुछ दिया है
हमने क्या किया है?
छलावा के सिवा हम ने कुछ नहीं किया
जो भी आया राह में, उसका नुक्सान ही पहुंचाया

नफरत एक नासूर.. Nafrat
Tuesday, October 24, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 26 October 2017

welcome barkat panjwani Like · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 24 October 2017

welcome tribhovan panchal LikeShow More Reactions · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 24 October 2017

भगवान् सब कुछ दिया है हमने क्या किया है? छलावा के सिवा हम ने कुछ नहीं किया जो भी आया राह में, उसका नुक्सान ही पहुंचाया

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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