नहीं लगता... Nahi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नहीं लगता... Nahi

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नहीं लगता
सोमवार, १३ मई २०१९

तुम्ही तो हो जो बसी
ला देती हो कभी बेबसी
जो में ऐसा जानता
प्यार में बस ऐसे डूबा रहता।

जब नहीं लगता मेरा दिल
हो जाती मन में हलचल
तुम सदैव रहते नजरो के सामने
हम देखते रहते जैसे दीवाने।

बस एक झलक मिल जाए
तो दिन खुशी से भर जाए
ना रहे मन गमगीन
दिन भी हो जाए रंगीन

जब मिल बैठेंगे दोनों अकेले में
हसरतें भी दिख जाएगी आँखों में
कह ना सकोगे अपने दिल की बात
फिर बैरन हो जाएगी सपनो की रात।

समजो तो ये है दीवानगी
पर हम मांगते आपकी परवानगी
मिल जाइए आपका हाथ ख़ुशी से
जीवन भी काट जाएगा रजामंदी से।

हसमुख मेहता

नहीं लगता... Nahi
Sunday, May 12, 2019
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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