नहीं चाहा विराम.. Nahi Chahaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नहीं चाहा विराम.. Nahi Chahaa

नहीं चाहा विराम


वीरो ने नहीं चाहा विराम
बस 'आराम हो हराम '
जब देश पे संकट छाये
सब सुख लागे पराये। नहीं चाहा विराम

कैसी कोकिला और कैसा ध्यान?
यहाँ तो गूंज रहा बस तोप का तान
तैयार है गरजने के लिए दुश्मन की ओर
पता नहीं कहाँ से आ जाए शोर। नहीं चाहा विराम

फूल सब हो रहे है 'लाल'
धरती भी बुला रही है 'आ जाओ मेरे लाल'
बोझ चुकाना है तुम्हे अपने देश की रक्षा के लिए
भाई बांधव और देशवासियों के लिए। नहीं चाहा विराम

प्रभु, अब तो करो किरपा
ऐसा क्यों होता है सहसा?
हर बार है हम खो देते हैं कोई ना कोइ लाल
हम सब नहीं बैठा रहे कोई ताल। नहीं चाहा विराम

दुश्मन का तो बस एक ही है काम
खुद को मिटाकर कर दो काम तमाम
हम तो मरकर जन्नत पाएंगे
तुम्हे मारकर हम शूरवीर कहलायेंगे। नहीं चाहा विराम

नहीं चाहा विराम.. Nahi Chahaa
Thursday, October 6, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 06 October 2016

Parupudi Satyavenkatavinodkumar देखा है हमने रातों का अँधियारा जीवन या हो मृत्यु का उजियारा चलते हैं हम सीने पे ले अंगारा कर काम तमाम हम हों एक तारा एक यही बस नाम तुम्हारे नारा चल हो निश्च्छल हो आंगन हो तुम्हारा अनगिनत जन्म हों एक तुम्हारा सहारा आँखों में चलता हर क्षण रूप तुम्हारा हो कहीं शत्रु पर जान तुम्ही पे निछावर ये आज नहीं ये कल भी नहीं है गंवारा मैं हट जाऊं उस पथ से जिसपर नाम गुदा हो तुम्हारा स्वांश. ०६/१०/२०१६. See Translation Like · Reply · 1 · 2 hrs · Edited 1 ·

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 October 2016

welcome Parupudi Satyavenkatavinodkumar 127 mutual friends Unlike · Reply · 1 ·

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Mehta Hasmukh Amathalal 06 October 2016

दुश्मन का तो बस एक ही है काम खुद को मिटाकर कर दो काम तमाम हम तो मरकर जन्नत पाएंगे तुम्हे मारकर हम शूरवीर कहलायेंगे। नहीं चाहा विराम

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