नहीं निभाते... Nahi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नहीं निभाते... Nahi

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नहीं निभाते
मंगलवार, २३ अक्तूबर २०१८

करते रहते है सब से सच्चे वादे
पर कोई नहीं उसे निभाते
दुनिया का रुख पलट गया है
मनुष्य ने भी अपने आपको बदल दिया है।

मेरा मन भी यही कहता है
जीवन आपको अनुरूप बनाता है
सबसे मिलना पर अपने आपको बचता है
दुनिया कि रसम से बचते रहना है।

हवा के रुख में भी आया परिवर्तन
सदाचार और ईमानदारी का हो गया दहन
चारित्र का सरेआम हो रहा हनन
फिर कैसे सोचे और करे मनन?

सच्चे नहीं कोई बचानेवाला
झूठे की है आज बोलबाला
ज्यादा दिखावा और खुद का की चलन
सब जगह हो रहा चरित्रहनन।

हमारी एक चीज़ याद रखना
कभी ना संग होना और बुरे को सजा देना
आज नहीं तो कल, उसका पतन होगा
समाज का बहिष्कार और बदनामी से अपमानित होगा।

हसमुख मेहता

नहीं निभाते... Nahi
Wednesday, October 24, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 24 October 2018

You are very right. People give promises telling that their promises are true but they very often do not keep. Promise given should be kept...10

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 24 October 2018

हमारी एक चीज़ याद रखना कभी ना संग होना और बुरे को सजा देना आज नहीं तो कल, उसका पतन होगा समाज का बहिष्कार और बदनामी से अपमानित होगा। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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