निगाहें बेकसूर...Nigahe Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

निगाहें बेकसूर...Nigahe

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निगाहें बेकसूर
रविवार, २५ जुलाई २०२१

सुर हो गए बेसुर
वाणी का ही था कुसूर
निगाहे थी बेकुसूर
नहीं मिला सकी सुर में सुर।

आगाह तो मिल गया
दिल ने धीरे से कह भी दिया
कर लो अपनी गलती एहसास
ले लो धीरे से अपनी साँस।

निगाहें तो उन्हे देखती रही
अंदर ही अंदर बेचेन रही
ढूंढती रही बेसव्री से
पूछती रही हर खबरी से।

किन गली गए साजन?
हम तो हो गए बेजान
जैसे शरीर हो गया बिन प्राण
कैसे दू में उसका प्रमाण।

निगाहे ढूंढे हर गली
मेरी बात किसीने ना सुनी
हो जाती है कभी कहा सुनी
हो जाती है दिल से नादानी।

अब तो आन मिलो सजना
बेकरार है हमरे नयना
ना करेगी अब कोई शरारत
कर दिया आपने हमें परास्त।

दिल दिया है जान भी देंगे
हम तुम्हारे हो के रहेंगे
दिल के बदले दिल ही देंगे
सपने हमारे सजाके रहेंगे।

एक दूसरे के मन का सहारा
ना हो दिल का कोई बंटवारा
मन तो है, आशिक़ आवारा
ढूंढता फिरता, मारा मारा।

डॉ हसमुख मेहता

निगाहें बेकसूर...Nigahe
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
एक दूसरे के मन का सहारा ना हो दिल का कोई बंटवारा मन तो है, आशिक़ आवारा ढूंढता फिरता, मारा मारा। डॉ हसमुख मेहता
COMMENTS OF THE POEM

welcome..Robert Taylor · Reply · 16 h

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DrNavin Kumar sent Today at 07: 58 वाह वाह DrNavin Kumar sent Today at 07: 58 प्रणाम DrNavin Kumar Upadhyay DrNavin Kumar sent Today at 08: 07 जिंदगी का फलासफा कुछ और है, हम साथ रहकर भी दूर रहा करते हैं। निगाहें हमेशा मिलती रहतीं हमारी,

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welcome..Muhammad Muntashir Rani Viva Kento Lekpa

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welcome. Rani Viva

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welcome. .Manoj Pandey

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welcome Hasmukh Bhandari

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Vinod Fullee

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Karma La

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welcome..Muhammad Muntashir

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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