नृत्य में निपुण Nrity Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नृत्य में निपुण Nrity

नृत्य में निपुण

Thursday, February 22,2018
3: 22 PM

नृत्य में निपुण

यादे ही रहेगी साथ
भले ही छूट जाय हाथ
ना हो कोई गीला
ये तो है एक मेला

हम मिले
तुम बोले
हम सुनते रहे
मन ही मन में कहे

ये मेला
रहा अजुबा
खामोश रही जुबान
बस दबा रहे अपना मन।

ऐसे ही तो मिलते है
मौक़ा ढूंढते रहेते है
नहीं कह पाते है
बस सीसककर रह जाते है।

ना सोचे थे
आप सामने ही थे
कुदरतका करिश्मा
निचे धरती ऊपर आसमा।

आसमा से मानो आयी मेंनका
लायी मोहकमुद्रा
नृत्य में निपुण
सर्वगुण संपन्न।

ये मात्र थी झलक
में देखता रहा अपलक
क्या था उसका मकसद?
क्या वो आयी थे करने मेरी मदद?

नृत्य में निपुण Nrity
Thursday, February 22, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 22 February 2018

Arka T. Chakrvarty Very nice... 1 Manage Like Like Love Wow

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Mehta Hasmukh Amathalal 22 February 2018

ये मात्र थी झलक  में देखता रहा अपलक  क्या था उसका मकसद?   क्या वो आयी थे करने मेरी मदद

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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