पगदंडियां बहुत है Pagdandiyaan Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

पगदंडियां बहुत है Pagdandiyaan

पगदंडियां बहुत है

किसीकी को अलविदा कहना
अपने मनको उस से जुदा करना
यह कोई सहज बात नहीं
दिन तो काट जाता है पर रात नहीं।

मन में कोई गीला शिकवा नहीं
पर कोई किसम परवा भी नहीं
उसने अपना मकाम बना लिया है
हमने भी उसे मना कर दिया है।

उसको सही चाह होती तो रुक जाता
मुझे किसी और दिशा में जाने को नहीं कहता
अपने विचार को थोड़ा सा बदल ने को कहता
थोड़ा सा विचार बदलता ओर वक्त की मियाज मांगता।

उसको सही चाह होती तो रुक जाता
मुझे किसी और दिशा में जाने को नहीं कहता
अपने विचार को थोड़ा सा बदल ने को कहता
थोड़ा सा विचार बदलता ओर वक्त की मियाज मांगता।

ऐसे बदमिजाज से छूट जाना बेहतर है
क्या कहते लोगो से की हम उसकी मंगेतर हैं?
जिस के भाग्य में लिखा है पीड़ा पाना
उसको बहुत कठिन है समझाना।

घृणा को प्रेम में कोई जगह नहीं
'किसी को अलविदा' कहना कोई इसकी कोई वजह नहीं
सर है तो पगड़ियां बहुत है
पहाड़ के ऊपर चढ़ने के लिए पगदंडियां बहुत है।

पगदंडियां बहुत है Pagdandiyaan
Sunday, November 13, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 13 November 2016

welcoem alpa negi Unlike · Reply · 1 · Just now 18 minutes ago

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Mehta Hasmukh Amathalal 13 November 2016

xAlpa Negi Beautiful... 18 minutes ag

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Mehta Hasmukh Amathalal 13 November 2016

घृणा को प्रेम में कोई जगह नहीं किसी को अलविदा कहना कोई इसकी कोई वजह नहीं सर है तो पगड़ियां बहुत है पहाड़ के ऊपर चढ़ने के लिए पगदंडियां बहुत है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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