पैगाम
शनिवार, ९ मार्च २०१९
हम शांति का पैगाम देते रहे
अहिंसा और भाईचारा का सन्देश देते रहे
क्या मिला मेरे देश को हिंसा के सिवा?
सरहद पर अविरत गोलाबारी और नफरत की हवा।
हमारे भीतरी दुश्मन ने भी सर उठाया
दुश्मन की चाल में अपने को फंसाया
"देश में नफरतकी हवा को फैलाया "
दुश्मन के होंसले को अप्रत्यक्ष होंसला बढ़ाया।
पर नहीं जान पाए देश के जुस्से को
उनका देश के प्रति जज्बात का
सैनिको के बलिदान वो विचलित हो उठे
दिल में प्रतिशोध की ज्वाला प्रज्वलित हो उठी।
राजकारणी नजरअंदाज कर रहे है
देश के मुद को समाज ने में नाकाम हो रहे है
बेफाम आक्षेप करकर अपने को ही हानि पहुंचा रहे है
अपने ही देश के हितों को खुद ही नुक्सान पहुंचा रहे है।
मज़बूरी से एकबार एकता दिखानी पड़ी
पर बाद में जबान लड़खड़ा पड़ी
अपने असली अंदाज में बस लड़ना शुरू कर दिया
सैनिको के शौर्य जैसे कालिख पोत रहे है।
हसमुख मेहता
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मज़बूरी से एकबार एकता दिखानी पड़ी पर बाद में जबान लड़खड़ा पड़ी अपने असली अंदाज में बस लड़ना शुरू कर दिया सैनिको के शौर्य जैसे कालिख पोत रहे है। हसमुख मेहता