वृक्ष की गुहार..Pain Of Tree Poem by Pushpa P Parjiea

वृक्ष की गुहार..Pain Of Tree

Rating: 5.0

ना काटो मुझे, मुझे भी दर्द होता है
ना काटो मुझे, मुझे भी दर्द होता है
क्यों बिना वजह लिटा रहे,
मृत्यु शय्या पर मुझे
मैं ही जन्म से मरण तक काम आया तेरे ऐ इंसा,
क्या वफादारी का अंजाम तू देता यूंही?
जिसने जिलाया, जिसने बचाया
उसे ही काटा तूने
जब आया धरती पर
सबसे पहलेलकड़ी से मेरी,
झूला बनाया तूने
मेरी छांव तले बचपन गुजारा था तूने
गिल्ली डंडा खेलकर बड़ा हुआ,
अब बनाया क्रिकेट बेट तूने
बादल बरसाए मैंने ही,
अन्न धन दिया मैंने ही तुझे
राजा बनकर बैठा मुझसे बनी कुर्सी पर,
और कई प्रपंच रचाए तूने
जब दिन तेरे पूरे हुए इस दुनिया में
तो, मेरी लकड़ी से चिता तक सजाई
तूने, नहीं कहता मान एहसान तू मेरा,
बस मांगू तुझसे इतना की रहम कर मुझपर
और आने वाली पीढ़ी के लिए बख्श दे तू मुझे
न मानी बात मेरी तो देखना कितना
तू पछताएगा हाहाकार करेगी धरती
और सारा संसार बिखर जाएगा

Friday, August 11, 2017
Topic(s) of this poem: abc
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 11 August 2017

This is very sensitive and thought provoking poem shared here. Cutting trees has brought ecological imbalance bringing us to deforestation and danger. A tree's appeal is beautifully presented in this very well penned poem for awareness. Thanks for sharing this poem with us....10

0 0 Reply
Pushpa P Parjiea 16 August 2017

Thanks alott mr. Kumarmani mahakul ji for your valuable, comments..

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