परिंदे.... Parinde Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

परिंदे.... Parinde

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परिंदे
सोमवार, १ अक्टूबर २०१८

परिंदे
जब जब आवाज देते
मुग्ध कर देते
और मन को प्रफुल्लित कर देते।

ना उनको मौसम का डर है
और ना हीं बारिश का ख़ौफ़ है

बस दाना मिल जाए तो चुगना है
और फिर हवा में उड़ना है।

आजाद है और आजाद रहना है
किसी की आपखुदी नहीं सहना है
जब तक पंख सलामत है
आकाश ही हमारी हकूमत है।

हम चाहते है हर कोई स्वतंत्र हो
धरती पर कोई परतंत्र ना हो
"जीए और जीने दे "
किसी के पंख ना काटे।.

हमारा रैनबसेरा ना उझाड़े
एक दूसरे को ना रंझाडे
वन एक सामूहिक संपत्ति
सब को हो उसमे सम्मति।

हम से है दुनिया जी शांति
सब को दिखाते हम क्रांति
हम रहेंगे शान्ति के दूत
आप भी बन के रहो धरती के सपूत।

हसमुख अमथालाल मेहता

परिंदे.... Parinde
Monday, October 1, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 01 October 2018

हम से है दुनिया जी शांति सब को दिखाते हम क्रांति हम रहेंगे शान्ति के दूत आप भी बन के रहो धरती के सपूत। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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