पतझड़ का आह्वाहन
सोमवार, १ अक्टूबर २०१८
रहने दो ना
किसी को नहीं है मना
पर मुझे छोड़ दो अकेली
नहीं चाहिए मुझे कोई सहेली।
मेरी वीरानी मुझे मंजुर है
दिल में यादें मौजूद है
उसका भी तो कोई वजूद है
बस मेरी गुमनामी कीव वजह खुद है।
ये पतझड़ ही मेरा सहारा है
सब कोई तो अपना ही है
मुझे वारबार क्यों ऐसा लग रहा है?
किसका गम मुझे सत्ता रहा है?
मेरी चीख ही मुझे सुनाई देती
मेरी आत्मा कहती है रोती रोती
तूने क्यों उझालो से महोब्बत की?
क्यों दस्तक दी या नौबत की?
बस मेरी आवाज दबी ही रहने दो
मेरी धड़कन को मुझे सुन ने दो
वो चीखचीख कर कह रही है
सावन में भी पतझड़ का आह्वाहन कर रही है।
हसमुख अमथालाल मेहता
बस मेरी आवाज दबी ही रहने दो मेरी धड़कन को मुझे सुन ने दो वो चीखचीख कर कह रही है सावन में भी पतझड़ का आह्वाहन कर रही है। हसमुख अमथालाल मेहता
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