पीड़ादायक.. Pida Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

पीड़ादायक.. Pida

Rating: 5.0

पीड़ादायक
सोमवार, २८ जनवरी २०१९

नाही ही ये नादानी
नाही गैरसमझदारी
इस में है समझदारी
जरूर उसमे है दुनियादारी।

आवाज दे देती है
मुजे हिला देती है
सपने मे भी बता देती है
की वो क्यों रोती है?

पर मुझे लगती थी पहचानी?
अच्छी लगती थी मुझे वीरानी
हर बार वो आके मुझे जगा जाती थी
में दिल को झंझोड़ जाती थी।

वो नहीं कह पाती
अपनी सिसकियाँ भर जाती
दर्द से कराहती
मुझे मायूस कर देती

मेरा उसे मना कर देना
रिश्ते को ठुकरा देना
बस जान पर बन आई
वो जान देकर चली गई।

में बेचेन रहता हूँ
उसकी हर बातकिसी को नहीं कह सकता
मेरी कहानी है दर्दभरी
अत्यंत पीड़ादायक और दुखभरी।

हसमुख मेहता

पीड़ादायक.. Pida
Monday, January 28, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 28 January 2019

में बेचेन रहता हूँ उसकी हर बात किसी को नहीं कह सकता मेरी कहानी है दर्दभरी अत्यंत पीड़ादायक और दुखभरी। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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