प्रत्याघात... Pratyghat Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

प्रत्याघात... Pratyghat

प्रत्याघात
सोमवार, ३१ दिसम्बर २०१८

मुझे किसी चीज की प्यास नहीं
पर आस जरूर बंधी हुई है
में अपने आप को अभीतक नहीं समज पाई हूँ
पर कोई भी चीज के लिए असमंजस में नहीं हूँ।

जीवन में कोई चीज की नाही हुई कमी महसूस
और नाही रहा मन में अफ़सोस
जीवन मे कुछ करना है यही मन में लगा रहा
बारबार मौक़ा आया भी, और जाता भी रहा।

किसी से कोई उम्मीद नहीं
और चीज को पाने की जल्दी भी नहीं
सही समय पर इसका भी पाना है तय
दिल में कभी नहीं लगी रहती है है

समझदारी को में सलाम करती हूँ
पर बारबार गलती भी करती हूँ
उसका खामियाजा भी मुझे ही भोगना पड़ता है
मन में इसका बड़ा प्रत्याघात पड़ता है

चलो देर आए दुरस्त आए
अपना जीवन है, अपने को ही संवारना है
रातको सोना है और सुबह को उठना भी है
अच्छे दिन की शुरुआत भी करना है।

हसमुख मेहता

प्रत्याघात... Pratyghat
Monday, December 31, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 31 December 2018

चलो देर आए दुरस्त आए अपना जीवन है, अपने को ही संवारना है रातको सोना है और सुबह को उठना भी है अच्छे दिन की शुरुआत भी करना है। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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