पृथ्वी का विनाश.. Prithvi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

पृथ्वी का विनाश.. Prithvi

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पृथ्वी का विनाश
शुक्रवार, १७ नवम्बर २०१८

क्या पृथ्वी का विनाश होगा?
क्या धरती पर प्रलय आएगा?
यह प्रश्न बारबार उठाया जा रहा है
पूरी मानवजात पर यह ख़तरा मंडरा रहा है।

कहीं पर तो जंगल में आग लगती
कहीं पर तो समंदर का कहर बरस्ता
धरती पर बड़ी तीव्रता के झटके भी आते
सड़क दुर्घटना में हजारों लोगो की मोत हो जाती।

बड़ेबड़े राष्ट्र संहारक साधनो का शक्ति प्रदर्शन करते
अपने विनाशक अस्लों को प्रदर्शित करते
कई देश एक दूसरे से भिड़ते रहते
मानव हो कर मानव का संहार करते।

कई देश परमाणु होड़ में शामिल है
सब मिलाकर दुनिया की छवि धुलमिल है
किसी ने यदि "संहारक" बटन दबा दिया
तो मन लो कीविनाश का दरवाजा खुल गया।

यह सब हमारा जिम्मा है
शांति को हर हाल में बनाके रखना है
निर्दोषो खून नहीं बहाना है
हो सके तो जहां को अच्छा बनाना है।

हसमुख मेहता

पृथ्वी का विनाश.. Prithvi
Friday, November 16, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 16 November 2018

Bahut steek aur saarthak 🙂... tribhvan kaul

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 November 2018

यह सब हमारा जिम्मा है शांति को हर हाल में बनाके रखना है निर्दोषो खून नहीं बहाना है हो सके तो जहां को अच्छा बनाना है। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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