पूरा परिवार.. Pura Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

पूरा परिवार.. Pura

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पूरा परिवार
बुधवार, १६ जनवरी २०१९

राजकारण में कोई ना रहे सदा दुश्मन
कोई नहीं कह सकता कब मिल जाए मन
सब को अपने अस्तित्व की है चिंता
सब अपना खेल खेलते सदा।

राजकारण अब बन गया है पैसा कमाने का धंधा
इस बात को स्वीकृत कर लेता है एक अंधा
जैसे ही पैसा मिला की पाला बदला
वो नहीं चाहते की देश का हो भला।

एक दूसरे पर कीचड़ उछालते
किसने कितना खाया उसकी ही चर्चा
पर अपने किये पर पर्दा नहीं डाल सकते
न्यायालय के फैसले उनके खिलाफ बोलते।

लग रहा है, ये लोग देश को बेच देंगे
देश के बड़े बड़े शहरो में कराते दंगे
फिर शुरू हो जाता आक्षेपों का दंगल
मानो दो शेर लड़ रहे जंगल।

पता नहीं इतना पैसा कहाँ से आता है?
उसका हिसाब कैसे रखा जाता है
हरकोई बेसुमार खर्चा करते है
कईयोंने तो अपने पुरे परिवार को झोंक रखा है।

हसमुख मेहता

पूरा परिवार.. Pura
Wednesday, January 16, 2019
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 16 January 2019

Mirii Miryam Well Said Sir Nice Lines

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 January 2019

Mirii Miryam 36 mutual friends Message

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 January 2019

Tum Yang Hang Limbu 12 mutual friends 1 Manage Like · Reply · 1m

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 January 2019

पता नहीं इतना पैसा कहाँ से आता है? उसका हिसाब कैसे रखा जाता है हरकोई बेसुमार खर्चा करते है कईयोंने तो अपने पुरे परिवार को झोंक रखा है। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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