रूठना और
मनाना और रूठ जाना
फिर धीरे से हंस जाना
माना ये सब प्रकृति के नियम है
और सब मनुष्य में कायम है।
में विशेष नहीं
केहने को शेष नहीं
फिर भी कहूँगी
ना कभी नहीं करुँगी।
पर ठेस पहुंचाता है
दिल को सताता है
क्यों वो चाहता है?
में चापलुसी करू? वो अपने आप क्या समझता है?
में सीधी सादी एक लड़की
देखती रहूँ सदा खिड़की
बस हवा का झुका मुझे सन्देश दे देता है
मन में अंदेशा नहीं आने देता है।
मैंने कभी बनावट करना नहीं सीखा
कभी नहीं किया हमला तीखा
बस प्रेम से मन को मनाया
उसके बड़े प्रेम से अपनाया।
आज मुझे गर्व है
प्यार एक पर्व सा है
सब को मनाना चाहिए अपनेपन से
मुक्त मन से और खुलेपन से।
आज मुझे गर्व है प्यार एक पर्व सा है सब को मनाना चाहिए अपनेपन से मुक्त मन से और खुलेपन से।
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मनाना और रूठ जाना फिर धीरे से हंस जाना माना ये सब प्रकृति के नियम है और सब मनुष्य में कायम है।... prakutika niyamko to man na hi hoga. Beautiful poem based on philosophy. Thanks for sharing.