सामना Saamnaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सामना Saamnaa

सामना

चला गया कल
नहीं रुका एक पल
आने वाला भी कल कहानी होगा
होनेवाला हो कर ही रहेगा

मुझे ही कुछ करना होगा
यह भावना होने से ही कुछ मिलेगा
अन्यथा भीड़ में खो जाना पडेगा
अंतिम पड़ाव से चिंतित रहना पडेगा

मैं कभी भी चिंता नहीं किया
जो मिला उसका सहर्ष स्वीकार दिया
कम से काम चला ने की हिम्मत को दाद देनी होगी
वरना अस्तित्व मिट जाने की घडी आती रहेगी।

सब कहते है
पर करता कोई नहीं है
भाषण हर कोई देता है
पर उसका रास्ता कोई नहीं दिखाता है।

बीत गया उसकी चिंता क्यों करे?
आनेवाले कल की चिंता में हम आज क्यों मरे?
जो भी होगा उसका निपटारा कर लिया जाएगा
जब चल ही पड़े हैं तो सामना तो होता रहेगा।

सामना Saamnaa
Saturday, October 7, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 08 October 2017

Bharat Mumbai Great poem! Like · Reply · 1 · 6 hrs Remove

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Mehta Hasmukh Amathalal 08 October 2017

welcome Bharat Mumbai Like · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 07 October 2017

बीत गया उसकी चिंता क्यों करे? आनेवाले कल की चिंता में हम आज क्यों मरे? जो भी होगा उसका निपटारा कर लिया जाएगा जब चल ही पड़े हैं तो सामना तो होता रहेगा।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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