सब की आँखेSab Ki Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सब की आँखेSab Ki

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सब की आँखे

गुरुवार, ७ जून २०१८

सुबह से हो गई शाम
फिर भी ना मिले मोरे श्याम
में ने गली गली पुकारा
फिर भी ना मिला किनारा।

मैं तो नाचू और झुमु
दिल से फिर भी विनवूं
तू सुनता तो होगा मेरी नाद
फिर क्यों लगाई ना आवाज?

कब मिलोगे मोरे घनश्याम?
में लगाऊं ताकत तमाम
छोड़ दिया जग सारा मैंने
नींद कर गयी हैरान नैने।

पता नहीं कौन गली गए
हम ढूंढ ते ही रह गए
राह लगे सुनी सुनी
ये कैसी है प्रेम की ध्वनि।

हर जीवन में है वास तुम्हारा
हर कोई ने नाम आपका पुकारा
अब ना जाजो, छोड़ साथ हमारा
जीना पाएंगे हम दोबारा।

वनवन गलीगली सब की आँखे ढूंढे
फिर धीरे धीरे आस उनकी टूटे
प्यार की खातिर दर्शन दे दो
इस जीवन से मुक्ति दे दो।

हसमुख अमथालाल मेहता

सब की आँखेSab Ki
Friday, June 8, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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वनवन गलीगली सब की आँखे ढूंढे फिर धीरे धीरे आस उनकी टूटे प्यार की खातिर दर्शन दे दो इस जीवन से मुक्ति दे दो। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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