सब को सुहाता Sab Ko Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सब को सुहाता Sab Ko

सब को सुहाता

कौआ चला हंसकी चाल
फूला के मुंह बनके लाल
छुपा ना पाया अपनी पहचान
बस बोल उठा और दिखा दी अपनी शान।

प्यार होता नही हो जाता है
खुद तो जलता ही है
दूसरे को भी जलाता है
रूठता है और मनाता भी है।

हम उम्र, कम उम्र, सब सही
लगता है सब को स्वर्ग यही
किसी को नहीं गम बस दिल को भाता
वाणी एक, भावना एक, सब को सुहाता।

ना करना बेईमानी
ना करना अपनी मनमानी
शान से कहना 'मेरे दिल की मतवाली'
सपनो को शानदार और रंगीन बनाने वाली।

ना करना बेईमानी
ना करना अपनी मनमानी
शान से कहना 'मेरे दिल की मतवाली'
सपनो को शानदार और रंगीन बनाने वाली।

इस से सजा संसार अजीब है
सब को लगता अपना नसीब है
सब को अपनी रानी 'अनारकली' लगती है
फूलों की बेगम, रात की रानी और ना जाने क्या क्या लगती है।

प्रेमी को कोई सजा नहीं
रहने दो उसको दिल का राजा यहीं
उसकी सल्तनत को सलाम करो
'जीयो हुजूर, हम सब ग़ुलाम की दुआ कुबूल करो।

Friday, January 13, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 17 January 2017

welcoem Lalon Bin Mahmud Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 17 January 2017

welcoem Lalon Bin Mahmud Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 13 January 2017

प्रेमी को कोई सजा नहीं रहने दो उसको दिल का राजा यहीं उसकी सल्तनत को सलाम करो 'जीयो हुजूर, हम सब ग़ुलाम की दुआ कुबूल करो।

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Mehta Hasmukh Amathalal 13 January 2017

प्रेमी को कोई सजा नहीं रहने दो उसको दिल का राजा यहीं उसकी सल्तनत को सलाम करो जीयो हुजूर, हम सब ग़ुलाम की दुआ कुबूल करो।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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