सदैव धारण Sadaiv Dhaaran Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सदैव धारण Sadaiv Dhaaran

सदैव धारण sadaiv dhaaran

ये हमारी एक त्रुटी रही है
जो हमेशा उठती रही है
हम बार बार रंग का भेद करने लगते है
काले रंग से नफ़रत और चीड़ करते है।

उनके समझाना पड़ता है
फिर भी मन नहीं मानता है
'हमारे भगवान् भी तो काले है
यह कहकर मुश्किल से समझा पाते है।

सफ़ेद रंग माना की आँखों को भाता है
पर काला रंग भी बहुत सुहाता है
जब काली कन्या पे जवानी का निखार आता है
चंद्रमा भी एकबार फीका पड जाता है।

जिस्म का सफ़ेद या काला होना कुदरत की देन है
पर दोनों चीज़ का खूब मनमेल है
दुनिया भर में कई काले और अश्वेत युगल है
जिनकी मिसाल देकर हम जीवन मंगल कर सकते है।

सफेद रंग पाकर आप गौरवशाली होने का अनुभव कर सकते है
साथ में पैसे का भी योग होतो 'सोने पे सुहागा' का आनंद ले सकते हो
पर अहंकार से पीड़ित होकर किसीके दिल पर चोट नहीं पहुंचा सकते
भगवान् भी इस चीज़ के लिए मंजूरी नहीं देते।

कर लो चोट अभिमान पर, पर सदैव रहो खुश अपने चारित्रमान होने पर
अपनी बुद्धिमानिता पर और गरिमा पर
यही आपके आभूषण है और कवच है
आपने इसे सदैव धारण करके रखना है।

सदैव धारण Sadaiv Dhaaran
Saturday, February 25, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 25 February 2017

Uves Khatri Nice maheta saheb Unlike · Reply · 1 · 2 hrs

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Mehta Hasmukh Amathalal 25 February 2017

welcoem uves khatri Unlike · Reply · 1 ·

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Mehta Hasmukh Amathalal 25 February 2017

कर लो चोट अभिमान पर, पर सदैव रहो खुश अपने चारित्रमान होने पर अपनी बुद्धिमानिता पर और गरिमा पर यही आपके आभूषण है और कवच है आपने इसे सदैव धारण करके रखना है।

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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