सादगी और सदाचारsadgi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सादगी और सदाचारsadgi

सादगी और सदाचार

गुरूवार, २८ जून २०१८

मनुष्य जैसा अवतार नहीं
स्वर्ग भी यही और नरक भी यही
पशुओ जैसा व्यहार किसी के साथ नहीं
कैसा भी है, धरातल पर इंसान ही सही।

हमें ही सोचना है
हमें ही सबकुछ करना है
मानवधर्म भी निभाना है
हर रीतिरिवाज को चलाना है।

ऐसा नहीं की पैसादार हो तो घमंड करो
जो थोडासा कमजोर है तो उसको अपमानित करो
अपने को ऊंचा दिखने के लिए उसकी अवगणना करो
और बातबात में प्रताड़ित करो।

मानवजीवन मूलयवान है
तो सादगी का एक वरदान है
जो जी गया अपने चरित्र से
नाम हो गया सर्वत्र से।

सादगी और सदाचार
और उसमे मिल जाय शिष्टाचार
फिर तो जीवन महकेगा
नाम भी ऊंचा हो जाएगा।

मेहता हसमुख अमथालाल

सादगी और सदाचारsadgi
Thursday, June 28, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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