साधू......Sadhu Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

साधू......Sadhu

Rating: 5.0

साधू
बुधवार, ३ अक्टूबर २०१८

साधू तो चलता भला
जग उसका बसेरा पर वो है अकेला
संसार की कोइ चाह नहीं
किसी से कोई बेर नहीं।

जो दे उसका भला
और ना दे उसका भी भला
संसार है मानवों का मेला
जाना सबको यहां से अकेला।

प्यार, महोब्बत से मिलना यहां
सरे जहाँ से अच्छा मेरा जहाँ
गले लगाकर लोग मिलते यहां
खाना खिलाकर लोग खुश होते यहां।

मान, सन्मान देना यहां की परम्परा है
प्रेमबन्धन का एक अनूठा आसरा है
धरती और आकाश के क्षितिज का मिलान
गहरा होता जा रहा दोनों का गठन।

संतो का यहां ना मांगे कोई परिचय
लोगों के मन में ना हो कोई संशय
धर्मके प्रतिहोता सब के मन में आदर
हालचाल पूछकर भी करते प्रणाम सादर।

हसमुख अमथालाल मेहता

साधू......Sadhu
Wednesday, October 3, 2018
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 03 October 2018

संतो का यहां ना मांगे कोई परिचय लोगों के मन में ना हो कोई संशय धर्म के प्रतिहोता सब के मन में आदर हालचाल पूछकर भी करते प्रणाम सादर। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathalal 03 October 2018

संतो का यहां ना मांगे कोई परिचय लोगों के मन में ना हो कोई संशय धर्म के प्रतिहोता सब के मन में आदर हालचाल पूछकर भी करते प्रणाम सादर। हसमुख अमथालाल मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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