सफर काट लो Safar Kaat Lo Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सफर काट लो Safar Kaat Lo

सफर काट लो

सफर काट लो अकेले
ये तो है सफर के मेले
नहीं आएगा साथ कोई अंत तक
लेलो सांस बेफिक्री से उम्र तक।

दोस्त अपनी जगह पर है
कोई है साथ तो वजह है
किसी को पैसे का गुरुर
तो कोई रहता उस से मजबूर।

देखा है मैंने आते जाते
कोई तो बीच मे ही छोड़ जाते
कोई बातोमे ही अपना इरादा जताते
हमारे दिलको ओर जलाते।

हमने भी रास्ता निकाल लिया है
दीवारों से नाता जोड़ लिया है
हमारे दोष और गुण को बोल देते है
स्वगत बोल के स्वीकार कर लेते है।

जीवन की यही विशेषता है
उसी को समझना ही नम्रता है
कुछ ऐसे ही और दिन निकल जाएंगे
हम अपने आपको जरूर समझ पाएंगे।

करना प्रभु से एक ही याचना
फिर धीरे से उसके बारे में सोचना
आपने उसके आगे सर झुकाया है
बस अब और कोई बकाया नहीं है

सफर काट लो Safar Kaat Lo
Saturday, December 17, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 17 December 2016

आपने उसके आगे सर झुकाया है बस अब और कोई बकाया नहीं है

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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