सहारा Sahara Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सहारा Sahara

सहारा

जिसने ढूंढा सहारा
समझलो वो जरूर हारा
वो बिल्कुल निश्चित है
आदमी चिंतित सा रहता है।

हमें सहारा क्यों चाहिए?
क्या हम काबिल नहीं है?
या कोई कोई रास्ता नहीं दिखता?
जो भो हो, सोच में है असमानता।

सहारा किसे चाहिए?
जिसे अपना मकसद पूरा करना हो?
अपनी हैसियत ना हो और जरिया ना हो
ऐसे में सहारा आवश्यक हो जाता हो।

सहारा उसे चाहिए जो समर्थ ना हो
कुछ भी करने में असमर्थ हो
कुछ मजबूरियां भी सहारा के लिए आगे करती है
सहारा एक अति आवश्यक चीज़ के रूप में महसूस करती है।

सहारे के लिए तभी कल्पना करो
जब अपने आपको महसूस हुआ हो
अपनी रणनीति के मुताबिक आवश्यकता हो
सहरा तब एक एक जीवनी बन चुका हो।

सहारा Sahara
Friday, August 11, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 11 August 2017

सहारे के लिए तभी कल्पना करो जब अपने आपको महसूस हुआ हो अपनी रणनीति के मुताबिक आवश्यकता हो सहरा तब एक एक जीवनी बन चुका हो।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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