सही रास्ता Sahi Raasta Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सही रास्ता Sahi Raasta

सही रास्ता

अपने आपको परखो
जहर को चखने की ख्वाइश मत रखो
आप सच्चे हो सकते है
लेकिन जग तो जूठा है।

आप अपना हक़ अपने पर जताओ
अपनी मंझिल को खुद पहचानो
कोई नहीं रोकता आपके पाँव की रफ़्तार को
करते रहो खोज किरतार की।

लोगो को बताने की जरुरत नहीं
अपने आपको पाक साबित करने की कोई आवश्यकता नहीं
वो तो पता पड सकता है बातें सुनकर
आदमी पहचान लेता है उसका लहजा देखकर।

आप सामर्थ्यवान हो सकते है
इससे लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है
हर आदमी अपने स्वार्थ के लिए ही सबकुछ करता है
दिखावा करना सबको आता है।

आप ये कह सकते है
मुझे अंधरे में उझाले दीखते है
वो रास्ता में देख सकती हूँ
जिसकी बदौलत में दुनिया को सही रास्ता दिखा सकती हूँ

ये कहना की 'में सार्थक हूँ' या में पूर्ण हूँ
ये बहुत बड़ी शेखी होगी जो किसी में नहीं
अपनापन दिखाना बहुत बड़ी कला है
बाकि सब छलावा और ओर उपरछला दिखावा है।

सही रास्ता  Sahi Raasta
Monday, June 26, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

1 Rupal Bhandari Comments Like · Reply · 1 · Just now

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success