सन्देश लेकर Sandesh Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

सन्देश लेकर Sandesh

सन्देश लेकर

वो निकलता है प्रेम का सन्देश लेकर
कभी छिपता तो कभी खुल्ले में आ कर
अपनी शीतलता की छाव बिखरेते हुए
सभी को सुख सन्देश देते हुए।

उसका निकलना ही मधुरता की निशानी
कितनी निखालसता और फिर भी निराभिमानी
प्रेम का सन्देश हर चांदनी किरण के साथ
'निभाओ मेरे संगसँग और फैलाओ हाथ।

आपका रात को निकलना बेमानी है
आपके बीचार तूफानी है
किसी को अपनी हवस का शीकार बनाना है
उसको अँधेरा अर्पित करके अपने को हीरो बनाना है।

हम ऐसी अंधेरे रात में भी ऐसा खेल नहीं होने देते
छुपा देते है आँचल को जिसे आप कुछ कर बही पाते
उसको आँसुओ में गमगीन हम देख नहीं सकते
इसलिए अँधेरी रात को अपना दोस्त बना लेते है।

मत करना कोई गुस्ताखी हमारा नाम लेकर
हम नहीं पाते ख़ुशी साथ किसी अत्याचारी को देकर
इसलिए आपका रात को बाहर निकलना कोई शुभ संकेत नहीं
हमारा निकला बस एक प्रेम की निशानी है सही।

Thursday, March 16, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

welcome rujpal bhandari Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

welcoem manisha mehta Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

welcoem atul yadav Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

welcoem htiesh sharma Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 16 March 2017

उसका निकलना ही मधुरता की निशानी कितनी निखालसता और फिर भी निराभिमानी

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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