संसार का यही नियम है Sansaar Kaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

संसार का यही नियम है Sansaar Kaa

संसार का यही नियम है

वो दिन ओर थे
जब हम मिला करते थे
हालचाल जरूर पूछ लेते थे
'फिर कब मिलेंगे' वो भी जान ही लेते थे।

उष्मा भरा एक वातावरण होता था
अच्छी चीज का अनुकरण होता था
पूछ ने मे भी एक तमीज़ होती थी
अच्छा खबरअंतर जान ने की एक ख्वाइश हुआ करती थी।

अब वो बात नहीं रह गई है
पेड़ के पत्ते पिले पड गए है
बस मानो एक ऊँची चीज़ खड़ी है
अपनी आन में अडी हुई है।

पता नहीं आजकल अभिमान ज्यादा दिखाई देता है
पैसे का या फिर खूबसूरती का मानो मिजाज दिखाई देता है
मुझे खुशनुमा वातावरण में भी भय नजर आता है
जहां दयालु नजर वहां प्रलय ही सामने आता है।

'भाईसाब कैसे है? घर में सब कैसे हैं?
पूछा करते थे दिल को संतोष दिलाने की सब कुछ कैसे चल रहा है
'बस ठीक ही है 'जवाब मिलता है मानो सुखा पड़ा हो
जबान ऐसे तोतला रही है मानो ताला पड़ा हो।

सब के सर पर मानो बोझ सा लदा है
मानो मार लगी है ओर विपदा का भार है
कुछ नहीं कर पाने का गम है
फिर भी मन में तो हम ही हम है।

कलियुग का असर तो बहुत पहले से ही था
पर उसका जादू हमपर अभी चल रहा था
दोस्त दुश्मन बने जा रहे थे
ओर साथी एक एक कर छोडे जा रहे थे।

हम ने प्रेम की दुहाई नहीं लगाईं
बस मन ही मन अपनी चाबी लगाईं
ताला किया बंध ओर तालाब में फैंक दी चाबी
'संसार का यही नियम है' सोचकर भर दी हामी।

संसार का यही नियम है   Sansaar Kaa
Sunday, December 18, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 18 December 2016

Santosh Kumar Sharma Bahut sundar Hasmukh ji Unlike · Reply · 1 · 17 mins

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Mehta Hasmukh Amathalal 18 December 2016

welcome santosh kumar Unlike · Reply · 1 ·

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Mehta Hasmukh Amathalal 18 December 2016

कलियुग का असर तो बहुत पहले से ही था पर उसका जादू हमपर अभी चल रहा था दोस्त दुश्मन बने जा रहे थे ओर साथी एक एक कर छोडे जा रहे थे। हम ने प्रेम की दुहाई नहीं लगाईं बस मन ही मन अपनी चाबी लगाईं ताला किया बंध ओर तालाब में फैंक दी चाबी संसार का यही नियम है सोचकर भर दी हामी।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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